गर्मी पर कविता पढ़नी है।

झूठी कोई कथा गढ़नी है।।


सत्य कहूँ तो मैंने जाड़ा

गरमी आतप नहीं सहे हैं

बचपन से लेकर हम अब तक

सुख सुविधा में पले बढ़े हैं


यदा कदा जो चले धूप में

आँचल में ले लिया छांव ने

तपती धूप दहकते पत्थर

नहीं पता कब सहे पाँव ने


जरत रहत दिन रैन सुना है

जलते हैं दिन रैन सुने हैं

पर हम ने इन सब से ज्यादा

एसी कूलर फैन सुने हैं


बड़े लोग एसी में रहकर

समर हॉट सब लिख लेते हैं

नकली मड हॉउस बनवाकर

पर्यावरण बचा लेते हैं


कोलतार की सड़क बनाते

सिर पर गिट्टी मोरंग लादे

कड़ी धूप में बीस रुपये पर

लदा हुआ रिक्शा धकेलते


तपते खेतों में दिन दिन भर

ले हल बैल हाँफते रहना

जब ऐसा जीवन जी लेना

तब गरमी पर कविता लिखना


वरना प्यारे गरमी  क्या है

ये तो पड़नी ही पड़नी है।

उघरे अंत न निभने वाली

झूठी कथा नहीं गढ़नी है


कविता हमें  नहीं पढ़नी है।

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