वेदनाओं के हलाहल सम अमिय पीते रहे हैं।
उम्र भर हम मृत्यु के आगोश में जीते रहे हैं।।
क्या सतत है जन्मना या मृत्यु को स्वीकार करना
नाम करना जगत में या सिंधु भव का पार करना
जब कभी उत्तर मिले तो उलझनों का बोझ लादे
प्रश्न घट भर सब समाधानों के घट रीते रहे हैं।।
आत्मा कैसे अमर है किस तरह काया क्षणिक है
ब्रह्म सह अस्तित्व जिसका क्यों कहा माया क्षणिक है
क्यों क्षणिक आनंद कहकर मन को भरमाया गया है
क्यों सचिद आनंद से वंचित भ्रमित भीते रहे हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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