सब को लगता है पा के बैठे हैं।
जबकि हम सब गँवा के बैठे हैं।।
दौलते-दिल लुटा के बैठे हैं।
क्या लगा दिल लगा के बैठे हैं।।
होम करने में कुछ तो जलना था
हम भी दामन जला के बैठे हैं।।
ज़िन्दगी का सफ़र तो क़ायम है
तुम को लगता है क्या के बैठे हैं।।
हम पे इतना यक़ीन ठीक नहीं
हम हमें आज़मा के बैठे हैं।।
भीड़ में खुद से लापता थे हम
यूँ नहीं दूर आ के बैठे हैं।।
साहनी
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