बेशक़ सर पे ताज़ न देना।

शाहाना   अंदाज़  न  देना।।


और जुबां से तल्खी झलके

मुझको वो आवाज़ न देना।।


छोटे से घर के मालिक को

दिल देना मुमताज़ न देना।।


नाहक़ उलझन बढ़ जाएगी

अपने दिल के राज न देना।।


आसमान कम पड़ते हैं तो

पंछी को परवाज़ न देना ।।


रहने देना दिल ही दिल को

दिल को नामे-साज न देना।।


उल्फ़त के अंजाम सुने हैं

उल्फ़त के आगाज़ न देना।।


साँसें तक गिरवी हो जाएं

ऐसा हमें सुराज न देना।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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