सहमी सी बोल उठी किसलय

अलि कितने हो पाषाण हृदय 

दिखने में कृष्ण सदृश लेकिन

गतिविधियों से क्यों लगे अनय।।


कल मुझ पर थे अनुरक्त हुए

अब उस पर जाकर रीझ गए

खुद चला गगरिया पर गुलेल

खुद हँसे और ख़ुद खीझ गए


हो निलज ढीठ नटखट निर्भय।।


पनघट से घर जाऊँ कैसे

बिसरी गागर पाऊँ कैसे

क्यों हुई चुनरिया दागदार

बाबुल को बतलाऊँ कैसे


कैसे सीखूँ अभिनय अन्वय।।


SS

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