ज़िन्दगी के दिन सुहाने खो गये।

मस्तियों के बारदाने खो गये।।


छुट गए साथी पुराने खो गए।

मेरे बचपन के तराने खो गए।।


कारोबारे-रंज़ो-ग़म के दौर में

कैफ़ वाले कारखाने खो गये।। 


सच मे नकली कहकहों के दौर में

अस्ल खुशियों के ख़ज़ाने खो गए।।


आदमी बेज़ार है जाये कहाँ

प्यार वाले आस्ताने खो गये।।


अजनबी रिश्ते यक़ी लायक नहीं

राब्ते  सारे  पुराने  खो गये।। 


जब से दीवारों ने आँगन गुम किये

गाँव आने के बहाने खो गये।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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