प्रिय मित्र राम सागर जी के निधन पर :-
तुम क्यों ऐसे चले गये प्रिय।
लो हम फिर से छले गए प्रिय।।
बुरे बुरे सब यहीं डटे हैं
जो थे अच्छे भले गए प्रिय।।
तुम समाज के प्रति अधीर थे
दो दिन आये मिले गए प्रिय।।
ज्यूँ सागर में राम समाये
तुम अनन्त में चले गए प्रिय।।
यदि यूँ ही आहत करना था
फिर क्यों मिलकर गले गए प्रिय।।
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