भूख की ख़ातिर जियाले बिक गये।

पेट पर  पांवों के छाले   बिक गये।।

एक सच्ची ख़बर छपने से रही

झूठ के डाले मसाले बिक गये।।

कोई कब तक तक ज़िन्दगी से जूझता

जबकि सारे साथ वाले बिक गये।।

तीरगी तो अब भी अपने साथ है

सिर्फ़ किस्मत के उजाले बिक गये।।

होटलों में बिक गयीं कुछ अस्मतें

या कि कुछ ईमान वाले बिक गये।।

धर्म खातों से जुडी थी मण्डियां

यूँ गरीबों के निवाले बिक गये।।

सब कमाई लुट गयी अपनी अदीब

कौड़ियों में जब रिसाले बिक गये।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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