मुझे भी अब नहीं पहचानता है।
यकीनन वो बड़ा तो हो गया है।।
अगर कुछ दे सको तो साथ आओ
यही अब दोस्ती का फलसफा है।।
कभी दिल में मेरे रहता था लेकिन
इधर वो कुछ दिनों से लापता है।।
हमारा घर बहुत छोटा है तो क्या
हमारा दिल बहुत ज्यादा बड़ा है।।
वही कहते हैं जो दिल सोचता है
वही करते हैं जो दिल चाहता है।।
सुरेश साहनी , कानपुर
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