ज़हां से लौट जाएंगे किसी दिन।
जो तन्हा ख़ुद को पायेंगे किसी दिन।।
रक़ाबत भी मुहब्बत की तरह है
उसे भी आजमाएंगे किसी दिन।।
किसी की चश्मेनम सब बोल देगी
उसे जब याद आएंगे किसी दिन।।
अभी रूठी हुई है ज़िंदगानी
उसे मर कर मनाएंगे किसी दिन।।
कि फानी हैं ये तन के आशियाने
ये सारे टूट जायेंगे किसी दिन।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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