कभी हँसने की कोशिश भी नहीं की।
कभी रोने की वर्जिश भी नहीं की।।
निगाहें डबडबायीं होठ काँपे
जुबाँ ने कोई लरजिश भी नहीं की।।
छुपाई भी नहीं ये ग़म की दौलत
मगर इनकी नुमाइश भी नहीं की।।
हमें जो भी मिला उसकी रज़ा से
उसे पाने की ख़्वाहिश भी नहीं की।।
बुरे हालात में फरियाद करते
ये हरक़त दौरे- गर्दिश भी नहीं की।।
तमन्ना थी ख़ुदा से वस्ल होता
ख़ुदावालों ने जुम्बिश भी नहीं की।।
निभाने में न थे कोताह कत्तइ
शिकन ,उफ्फ क्या है लग्जिश भी नहीं की।।
सुरेश साहनी
9451545132
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