मची कचौंधन कांव कांव है।
शायद जल्दी ही चुनाव है।।
इसीलिए तो गहमागहमी
चिल्लमचिल्ली गांव गांव है।।
लट्ठ चलाना ,जेल भेजना
सत्ता पर कितना दबाव है।।
जनता को हर दर्द भुला दे
आश्वासन ऐसा पुलाव है।।
दिन पर दिन दुख सहते रहना
जनता का ये ही स्वभाव है।।
नेताओं के सुख का कारण
जनता के बढ़ते अभाव है।।
यार यही तो राजनीति है
तुम कहते हो भेदभाव है।।
सुरेश साहनी
Comments
Post a Comment