मेरी घटिया किन्तु मंचीय कविता आपके अवलोकनार्थ-
आम आदमी में जो एलिट क्लास बना है|
चोरी की कविता से कालिदास बना है||
जली झोपड़ी तब उनका आवास बना है|
इसी तरह से वर्तमान इतिहास बना है||
चोरी,डाका,राहजनी,हत्या ,घोटाला,
इस क्रम से परकसवा श्रीप्रकाश बना है||
बिरयानी के साथ रिहाई मांग रहा है,
न्याय व्यवस्था का कैसा उपहास बना है||
कौन मिलाता है केसर,असगंध ,आंवला,
घास फूस से मिलकर च्यवन पराश बना है||
जूता-चप्पल ,गाली-घूंसा ,मारा-मारी,
लोकतंत्र का संसद में बनवास बना है||
संसद है ये,जंगल है या कूड़ाघर है,
या असीम के शब्दों में संडास बना है||
बलवंत सिंह हो या अफजल हो ,या कसाब हो,
हर चुनाव इनकी फांसी में फाँस बना है||
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