यही सोचकर टांग सभी ने तोड़ी है।
कविता लिखना गोया हलवा पूड़ी है।।
खाली पीली का सम्मान बुरा है क्या
कवि कहलाने पर कुछ बंधन थोड़ी है ।।
लय मिल जाने पर हम है डर्बी वाले
नहीं मिले तो समझो लँगड़ी घोड़ी है।।
सत्ता से विद्रोह करे वो कवि कैसा
कवि की मन्ज़िल अब सत्ता की ड्योढ़ी है।।
अंतरात्मा है तो घर मे धरि आओ
ऐसे कवि की किस्मत बड़ी निगोड़ी है।।
बेहतर है कवि गूंगा श्रोता बहिरे हों
सफल यही तो राम मिलाई जोड़ी है।।
राजा आन्हर चाटुकार कवि भाट हुआ
कैसे बोलें एक अन्धा एक कोढ़ी है।।
कवि थे जो धाराये मोड़ा करते थे
भाटों ने धारा में कविता छोड़ी है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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