तुम भी क्या क्या कह देती हो

मैं भी क्या क्या सुन लेता हूँ।।

इस उलझन में जाने क्या क्या

ताना बाना बुन लेता हूँ।।

पर मेरी निर्वाह-वृत्ति की

सीमाएं भी मुझे पता है।

स्वप्न बहुत हैं हम दोनों के

किन्तु आय की सीमितता है।।

ऐसे में इस वृत्ति कमीशन

ने सपनों ही को तोडा है।

हमको क्या हर मेहनतकश को

कहाँ किसी लायक छोड़ा है।।

दाल और रोटी रहे सलामत

किसी तरह बच्चे पढ़ जाएँ।

सपने पूरे हो जायेंगे

बस बच्चे आगे बढ़ जाएँ।।

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