कहकशांओं में चाँद तारों में।

आओ हम तुम चलें बहारों में।।


बाद अपने भी लोग आएंगे

रौशनी कर चलो  दयारों में।।


कोई तुमसा कभी मिला ही नही

कैसे कह दूँ  तुम्हे हज़ारों में।।


हुस्न नीलाम हो गया होता

ईश्क़ खोता अगर नज़ारों में।।


वक्त के हाथ बिक गया होता

प्यार बिकता अगर बाजारों में।।


तुम मेरी रूह में समा जाओ

जैसे महकी फ़िज़ा बहारों में।।


डल के पानी में कुछ मिलावट है

आग लगने लगी सिकारों में।।


सुरेश साहनी

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