सिर्फ तीतर बटेर हैं ये सब।

या कि मिट्टी के शेर हैं ये सब।।


रोशनी ये किसी को क्या देंगे

जब सरे दिन अंधेर हैं ये सब।।


कल ये गरिया रहे थे सर चढ़ कर

आज पैरों में ढेर हैं ये सब।। 


लोक कल्याण के शिवार्चन में

कैसे माने कनेर हैं ये सब।।


सुरेश साहनी , कानपुर

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