बातें  करते करते  बहका करता है।

अल्ला जाने क्या क्या सोचा करता है।।


मैं उसको अपने सीने में रखता हूँ

इधर उधर तो वो ही भागा करता है।।


शायद उसको भी दिल की बीमारी है

गुमसुम खुद में खुद को खोजा करता है।।


मुश्किल है वो इसके फल खा पायेगा

बूढ़ा जो पेड़ों को सींचा करता है।।


सब कहते हैं कोई काम नहीं करता

ख़ाली बैठे बैठे कविता  करता है।।


आख़िर उसने कुछ तो पाप किये होंगे

क्या कोई नाहक़ ही तौबा करता है।।


कितना दूर रहें कैसे इंकार करें

वो ख्वाबों में भी आ जाया करता है।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा