फिर फिर सम्हालता रहा फिर भी बिखर गया।

वो ख़्वाब था जो नींद में आकर गुज़र गया।।

टूटी कगार उजड़े हुए घर गिरे दरख़्त

सैलाबे-इश्क़  जैसे भी उतरा  उतर गया।।

उम्मीद थी कि ज़िन्दगी आएगी एक दिन

इतना पता है  कोई  इधर से उधर  गया।।

दुनिया को जीतने की तमन्ना निकाल दे

दुनिया वहीं है देख सिकन्दर किधर गया।।

हुस्ने सियाह पर जो नज़र कैश की पड़ी

लैला भी कह उठी कि मुक़द्दर सँवर गया।।

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