आप को हम पसंद हैं साहेब।

आप किसकी पसन्द हैं साहेब।।


हैसियत आप से भले कम है

आरजूयें बुलन्द हैं साहेब।।


क्यों हरेक बात पर उलझते हैं

आप तो अक्लमन्द हैं साहेब।।


आप को छोड़कर कहाँ जाएँ

आपके फ़िक्रमंद हैं साहेब।।


थम चुका हैं वो वक्त का तूफां

अब हवा मन्द मन्द है साहेब।।


आपने किस के सुन लिए शिकवे

 अपनी बोली तो बन्द है साहेब।।


आप को कौन बाँध सकता है

आप खुद  बाकमन्द हैं साहेब।।


आप को शौक है लुटा दीजै

हम तो बस अर्जमन्द हैं साहेब।।

 

मेरे जैसे अगर हजारों हैं

आप जैसे भी चन्द हैं साहेब।।

सुरेश साहनी कानपुर

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