या समय के साथ चलना सीख लो।

या कि संघर्षों में पलना सीख लो।।

या कि अपना लो ज़माने का चलन

या ज़माने को बदलना  सीख लो।।

सीख लो कुछ तर्ज़े मैख़ाना अदीब

जैसे कि शीशे में ढलना सीख लो।।

हर तरफ कुछ बाज़ हैं कुछ भेड़िये

कूदना उड़ना उछलना सीख लो।।

हैं ज़हाँ की राह पथरीली बड़ी

ठोकरें खाकर सम्हलना सीख लो।।

हाँ तुम्हारी इस अदा में धार है

शोख नज़रों से मचलना सीख लो।

सुरेश साहनी, kanpur

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