जब किसी ने दिन बिताया धूप में।

तब शज़र का ज़िक्र आया धूप में।।


कौन खाता उसकी हालत पे रहम

देर तक था एक साया धूप में।।


सारे अफ़सर आप बैठे छाँव में

और बच्चों को बिठाया धूप में।।


दर्द दहकां का हमें मालूम हो

हमने यूँ ख़ुद को तपाया धूप में।।


एक सूरज आसमां में जल उठा

एक गुल जब खिलखिलाया धूप में।।


 वक़्त मत बरबाद करिये छाँव संग

जिसने है जो कुछ बनाया धूप में।।


छाँह वाले काम आ सकते थे पर

हमने ख़ुद को आज़माया धूप में।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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