जब भी जाते हैं सनमखाने में हम।
ख़ुद को क्यों पाते हैं वीराने में हम।।
आज भी मेरी हक़ीक़त में हैं वो
आज भी हैं उनके अफसाने में हम।।
उस ख़ुदा को भी समझना चाहिए
गलतियां करते हैं अनजाने में हम।।
देख डाले जब कई दैरो-हरम
तब तो आ पाये हैं मयखाने में हम।।
आशिक़ी भी क्या अजब सी चीज़ है
ख़ुद को भूले उन को बिसराने में हम।।
ग़म के दरिया में वो गहराई कहाँ
इस क़दर डूबे हैं पैमाने में हम।।
ज़िन्दगी पाकर के रोये थे मगर
मुतमइन हैं मौत को पाने में हम।।
सुरेश साहनी , कानपुर
9451545132
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