कि ग़म में मुस्कुराना आ गया है।
हमें ख़ुद को सताना आ गया है।।
तड़प है इश्क़ की बुनियाद गोया
तो तड़पाओ यगाना आ गया है।।
हमारा दिल जलाओ बुझ न जाये
तुम्हें बिजली गिराना आ गया है।।
अगरचे रूठना है रूठ जाओ
हमें भी अब मनाना आ गया है।।
कहाँ जायें न सोचे अहले महफ़िल
हमें दुनिया से जाना आ गया है।।
अभी रुकते हैं शायद ज़िन्दगी में
मुहब्बत का फसाना आ गया है।।
चलो फिर इश्क़ का परचम उठा लें
अदूँ अपने ज़माना आ गया है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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