पूर्ण समर्पण सात स्वरों का हो तब ही संगीत बने।

अक्षर अक्षर ब्रम्ह दिखे जब शब्द शब्द तब गीत बने।।

मन मथ दे जब मन्मथ आकर तब रति की नवनीत बने।

तब राधा खुद श्याम हो उठे प्रेम जगत की रीत बने।। सुरेश साहनी

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