मैंने  सिर्फ  दुहाई दी है।

तुमने तो रुसवाई दी है।।

तुमने उल्फ़त के बदले में

ठोकर पीर जुदाई दी है।।

मैं रोया तो चुपके चुपके

किसको चीख सुनाई दी है।।

इश्क़ मुहब्बत को तुमने ही

यह फ़िरक़ा-आराई दी है।।

लगता है तुमको मालिक ने

फ़ितरत ही हरजाई दी है।।

सुरेश साहनी,कानपुर।।

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