राह में शामो- सहर करते हो तुम।

किसलिए इतना सफ़र करते हो तुम।।


किसके ग़म में जल रहे हो अनवरत

किस की ख़ातिर दिल दहर करते हो तुम।।


सर्दियों में हो ठिठुरते जिस्म से

गर्मियों में क्यों ग़दर करते हो तुम।। 


इस तरह खानाबदोशी ओढ़कर

ख़ुद को क्योंकर दरबदर करते हो तुम।।


तुमको आलस क्यों नहीं छूता अदीब

क्यों नहीं कुछ ना नुकर करते हो तुम।।


Suresh sahani, Kanpur

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