श्रद्धांजलि ।


इस तरह तुम यकायक कहाँ चल दिये।

छोड़कर पीछे अपने निशां चल दिये।।


तुम थे भटकी हुई कौम के राहबर

किसलिए छोड़कर कारवाँ चल दिये।।


मरहले मरहले लोग ताका किये

और तुम थे कि बस बदगुमां चल दिये।।


तोड़कर कसरेदिल दिलवरों के सनम

क्या बनाने ख़ुदा का मकां चल दिये।।


तुम ही आवाज थे तुम ही चुप हो गए

बेजुबानों की लेके ज़ुबाँ चल दिये।।

सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है