#वेदना-

मन उपवन में कुसुम खिले थे

मुरझाये तो गीत बन गए।

नयनों में कुछ स्वप्न तिरे थे

छितराये तो गीत बन गए।।

 

अलसाया सा यौवन तेरा

अधनिंद्रा में मेरी आँखें

स्मित में आमन्त्रण पाकर

उम्मीदों ने खोली पाँखें


बहके बहके कदम हमारे

चल न सके तो गीत बन गए।।मन उपवन...


आजीवन भटका मैं जैसे

कोई जोगी या बंजारा

किंतु मुझे क्या जाना तुमने

कोई भँवरा या आवारा


यायावर के जख़्म किसी ने

सहलाये तो गीत बन गए।।मन उपवन....


तुमको मैंने कदम कदम पर

समय समय पर दिया सहारा

प्रतिउत्तर में मिली निराशा

जब भी मैंने तुम्हें पुकारा


यह पीड़ा शब्दों में गढ़ कर

जब गाये तो गीत बन गए।।मन उपवन....


आशा थी तुमसे मिलने की

अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर

किन्तु तुम्हारी हठधर्मी से

हर उत्कंठा रही निरुत्तर


सद्य प्रतीक्षित प्रश्न बावरे

अकुलाये तो गीत बन गए।।मन उपवन....

सुरेशसाहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा