भईया दिल्ली में रहते हैं।

जहाँ आदमी कम रहते हैं।।


भइया बड़े मिनिस्टर भी हैं

बड़े बड़े वादे करते हैं

भोली  जनता के सपनों से

ऐसे ही खेला करते हैं

पर धन्ना सेठों के दुख सुख-

में शामिल हरदम रहते हैं।। भईया...


झोंपड़ियों को रोशन करने

की भईया बातें करते हैं

यूँ बस्ती में आग लगाकर

राजनीति सेंका करते हैं

उन्हें पता है किसके पैसे

कैसे कहाँ हज़म करते हैं।। भईया....


भैया जिम्मेदार कहाँ थे

आज मगर हम है अचरज में

दो दो नई भाभियाँ रख ली 

हैं भौजाई के एवज में

भौजाई के साथ गांव में

जाने कितने ग़म रहते हैं।। भइया....


चुटकी चुटकी उम्मीदों पर

अँजुरी भर आश्वासन देना

भईया जी अब सीख गए हैं 

पीएम जैसा भाषण देना।।


उनकी शतरंजी चालों में

कितने पेंचों- ख़म रहते हैं।। भईया...

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा