ख़ाक में मिल गए नगीने सब।

रोशनी में हैं अब कमीने सब।।


और हम इन्तजार क्या करते

चुक गये साल दिन महीने सब।।


जिसकी ख़ातिर कमा के रखना था

शुक्र है ले लिया उसी ने सब।।


जिनको लगता था हैं वो दौरे- ज़मां

एक एक कर हुए करीने सब।।


जाने कैसे जहाज डूब गए

पार  होते रहे  सफीने सब।।


हमने माना गुनाह माफ हुए

क्या चले जायेंगे मदीने सब।।


सुरेशसाहनी

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