मैं जब कभी बिखरा हूँ।
कुछ और ही निखरा हूँ।।
हालात ने मारा भी
मौजों ने डुबाया भी
हालात से उबरा भी
लहरों ने बचाया भी
जिस तरह मैं उजड़ा हूँ
उतना ही मैं संवरा हूँ।। मैं जब कभी
घेरा गया गर्दिश में
फ़ांसा गया साजिश में
मजबूत हुआ हूँ मैं
हालात से वर्जिश में
हाँ जब कभी टूटा हूँ
फिर जोड़ के लौटा हूँ ।। मैं जब कभी
हाँ रात तो आयी है
तकदीर का किस्सा है
पर दिन का निकलना भी
तदबीर का हिस्सा है
यूँ जब भी मैं गिरता हूँ
कुछ और ही उठता हूँ।मैं जब कभी
मन मार के मत बैठो
यूँ हार के मत बैठो
तकदीर के लिक्खे को
स्वीकार के मत बैठो
सोचो की विधाता हूँ
मैं खुद को बनाता हूँ।। मैं जब कभी
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