किसकी ख़ातिर रोना धोना।

जीवन ही जब पाना खोना।।

जाने कितने छोड़ गए पर

दुख देता है अपना होना।।

मृत्यु मुक्ति है या अच्छा है

जीर्ण शीर्ण काया को ढोना।। 

रहने पर नजरों में रखते

जाने पर क्या आंख भिगोना।।

मृत्यु हुई फिर कौन मिलेगा

ढूँढ़ो  चाहे  कोना कोना ।।

कलम किताबें अरतन बर्तन

कपड़े लत्ते और बिछौना।।

फिर दुनिया है मशरूफ़ों की

हम जैसों को ख़ाली रोना।।

जगना रोना अपनी फ़ितरत

उनकी किस्मत खाना सोना।।

सुरेश साहनी , कानपुर

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