तुम्हें मालूम है
जब बढ़ते दमन के खिलाफ़
मैं कुछ नहीं कर पाता
तब कविताये लिखता हूँ
रेत में सिर धँसाये शुतुरमुर्ग की तरह.
आने वाले खतरों से
अनजान बनने की आख़िरी कोशिश
राहत तो देती है
कल अपनी बारी आने तक.....
*सुरेश साहनी
तुम्हें मालूम है
जब बढ़ते दमन के खिलाफ़
मैं कुछ नहीं कर पाता
तब कविताये लिखता हूँ
रेत में सिर धँसाये शुतुरमुर्ग की तरह.
आने वाले खतरों से
अनजान बनने की आख़िरी कोशिश
राहत तो देती है
कल अपनी बारी आने तक.....
*सुरेश साहनी
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