और होते न इम्तिहां अपने

आप होते जो जाने जां अपने

तल्ख़ कैसे तअल्लुक़ात हुए

कौन आया था  दरमियां अपने।।

आप फिर भी तलाश सकते थे

हमने छोड़े थे कुछ निशां अपने।।

कौन दिल का चमन उजाड़ गया

आशना जब थे  बागवां अपने।।

किसने लूटी यकीन की दौलत

अपने रहबर थे पासवां अपने ।।

हमसुखन हमख्याल क्या होंगे

अहले खंज़र हैं हमज़ुबां अपने।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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