प्रथम बार देखा था जैसे

फिर उस तरह निहारो प्रियतम

पुनः अपरिचित  बन कर आओ

ए! कह पुनः पुकारो प्रियतम


प्रथम मिलन अनुभूति दिव्य सी

बिना छुए सनसनी दौड़ना

मेरा भय कम्पित हो उठना

और शिशिर में स्वेद छोड़ना


उसी समय के कैनवास पर

फिर वह चित्र उतारो प्रियतम


छलिया श्याम घटा बन आओ

तन मन सब हरषाओ प्रियतम

बिजली बनकर मुझे डरा कर

अपने अंक लगाओ प्रियतम


दृष्टि मलिन थी या मन कलुषित

इतना तो स्वीकारो प्रियतम


सुरेश साहनी, कानपुर

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