खीझ कर लज्जा किसी दिन
बन्ध सारे तोड़ देगी
क्या करोगी जब प्रतीक्षा
धैर्य अपना छोड़ देगी.....
ठीक है मन बावरा है
जो नहीं बस में हमारे
या कि आवारा भ्रमर है
रूप के रस का तुम्हारे
और यह आवारगी ही
इस कथा को मोड़ देगी.......
तुम बहुत सुन्दर हो
इतना भी अगर सुनना न चाहो
प्रेम तुमसे क्यों जताएं
तुम अगर गुनना न चाहो
एक दिन तुमको तुम्हारी
ऐंठ ही झिंझोड़ देगी .....
आज दर्पण देखकर तुम
मुग्ध हो कल क्या करोगी
झुर्रियां चेहरे की लेकर
क्या स्वयम से छुप सकोगी
क्या करोगी तुम नियति जब
रूप का घट फोड़ देगी......
सुरेश साहनी, कानपुर
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