हर घड़ी मनुहार करना
क्या यही है प्यार करना..
कब तलक रूठे रहोगे
सीख लो अभिसार करना....
रूपसी हो गर्व कैसा
मानिनी हो दर्प कैसा
एक दूजे से सृजन है
रति बिना कंदर्प कैसा
कल्पना कृति संगमन है
प्रेम को साकार करना....
हर घड़ी होती नहीं है
भावनाओं के मिलन की
शुभ मुहूरत के प्रहर में
क्या प्रतीक्षा आचमन की
युग्म होना है स्वयं के
प्रेम का विस्तार करना....
अंकुरण प्रभु प्रेरणा है
प्रीति अंगीकार कर लो
देह से ऊपर उठो प्रिय
मन भी एकाकार कर लो
अन्यथा बस वासना है
देह एकाकार करना.....
Suresh Sahani
Comments
Post a Comment