नफरतों से जमीं भरी न रहे।
देखना इश्क़ की कमी न रहे।।
ऐ ख़ुदा तेरी क्या ज़रूरत है
आदमी ही जो आदमी न रहे।।
तीरगी इस क़दर न छाये कहीं
चाँद तारों में रोशनी न रहे।।
आदमी ही वली न हो जाये
जो वली है वहीं वली न रहे।।
झूठ है कुर्सियों पे डर तो है
ये न हो कल सही सही न रहे।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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