हम तो यूँही भौक रहे हैं|

आप मगर क्यूँ चौंक रहे हैं|| 

वादा करना और भूलना,

आप के क्या-क्या शौक रहे हैं||

 मेरा  दामन काला क्यूँ है|

उसके घर उजिआला क्यूँ है||

कौन   हैं जो झोपड़ीकी  तरफ,

बढ़ा  उजाला रोक रहे हैं||

एक  तरफ सड़ता अनाज है,

बदले  में बेचनी लाज है,

भूखे पेट की खातिर  अपना,

तन  बाजार में झोंक रहे हैं||

आज तलक तो यही पढ़ा है,

निजी स्वार्थ से देश बड़ा है,

आज यही जब   पढ़ा रहा हूँ,

नौनिहाल   क्यूँ टोक रहे हैं||

सुरेशसाहनी

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