कहाँ की बात कहाँ पर उठा दिया तुमने।

खुशी के जश्न में आकर रुला दिया तुमने।।

 उसे गए हुए वैसे तो इक ज़माना हुआ

उठा के जिक्र उसे फिर ज़िला दिया तुमने।।

कुरेद कर के सभी जख़्म कर दिए ताज़े

दवा के नाम पर यह क्या पिला दिया तुमने।।

सियासतों की बीमारी तुम्हे कहाँ से लगी

किसे हवा दी और किसे बुझा दिया तुमने।।

मुझे यकीन था इक तेरी आदमियत पर

मेरे यक़ीन को क्यों कर मिटा दिया तुमने।।

सुरेश वक्त वो अब फिर कहाँ से लाओगे

जिसे कि बैठकर यूँही गँवा दिया तुमने।।

सुरेश साहनी

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