तुम दिखती हो तो लगता है

इक राधा थी इक श्याम भी थे

जो बरसाने  में फेरे कर

अनजाने में बदनाम भी थे

तुम कितनी सुन्दर लगती थी

रुक्मिणी सत्यभामा क्या हैं

तुम अब भी सुन्दर लगती हो

रम्भा कजरी श्यामा क्या हैं

सच पूछो तो इन रिश्तों के

संसारिक  नाम  नहीं होते

वरना गोकुल मथुरा होते

पर   राधेश्याम  नहीं होते

तब भी तुम से था प्यार बहुत

अब भी उतना अपनापन है

पा लेना अंत प्रेम का है

खो देना निश्चित जीवन है

यह खो देना ही राधा को

औरों से आगे रखता है

जब कोई श्याम सुमिरता है

राधे को आगे रखता है.....

सुरेश साहनी,कानपुर

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