हादसा दर्दनाक हो  तब ना।

मौत भी इक मज़ाक हो तब ना।।


लोग हमदर्दियाँ जताये क्यों

वोट से इत्तेफ़ाक़ हो तब ना।।


कैसे क़िरदार पर सवाल करें

अपना दामन भी पाक हो तब ना।।


हम सुख़नवर कहाँ से हो जाएं

ख़्वाब उल्फ़त का खाक़ हो तब ना।।


कैसे मानेगा मुझको दीवाना

ये गरेबान चाक हो तब ना।।


तंज़ करने से दूर भागोगे

ये मज़ाकन सुज़ाक़ हो तब ना।।


तुम सिकन्दर तो हो ही जाओगे

पहले दुनिया मे धाक हो तब ना।।


किस तरह खाएं भूख से ज़्यादा

इतनी ज़्यादा ख़ुराक हो तब ना।।


रोब ग़ालिब हो वज़्म में अपना

हम में मीरो- फ़िराक़ हो तब ना।।


सुरेश साहनी,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है