इस शहर में मैं अपना शहर ढूंढ़ रहा हूँ।
अपने शहर में अपनो के घर ढूंढ़ रहा हूँ।।
बरसों से भटकता हूँ समन्दर के किनारे
जो दिल में उठी थी वो लहर ढूंढ़ रहा हूँ।।
इन झील सी आँखों में किसे खोज रहा हूँ
क्या अपनी मुहब्बत का असर ढूंढ़ रहा हूँ।।
कुछ शेर मेरे जेहन में आवारा फिरे हैं
मैं काफ़िया रदीफ़ बहर ढूंढ़ रहा हूँ।।
हैं इंतज़ार में भी मजा तुने कहा था
मैं तब से तुझे शामो -सहर ढूंढ़ रहा हूँ।।
इस शहर के हालात अभी ठीक नहीं है
मिल जाये कोई ठौर ठहर ढूंढ़ रहा हूँ।।
मैं दिल का सुकूँ ढूंढते आ पहुँचा भंवर में
सब सोचते हैं लालो-गुहर ढूंढ़ रहा हूँ।।
सुरेश साहनी , कानपुर
Comments
Post a Comment