ठीक है ज़ख़्म भर ही जायेंगे।

फिर भी हम कल उधर ही जायेंगे।।


हम मुक़ाबिल हैं आंधियों में भी

कैसे सोचा बिखर ही जायेंगे।।


लाख खानाख़राब है मौला

हम अभी उसके घर ही जायेंगे।।


हौसला है तो आसमानों पर

हम बिना बालो-पर ही जायेंगे।।


जो नहीं जानते हैं मय क्या है

वो अभी दैरो दर ही जायेंगे।।


सू ए मक़तल है यार का घर तो

शौक से उस डगर ही जायेंगे।।


आह के तीर दिल से निकले तो

कुछ न कुछ काम कर ही जायेंगे।।


सोहबते-हुस्न रंग लाएगा

हम भी कुछ कुछ सँवर ही जायेंगे।।


मौत से कितना दूर भागेंगे

जब थकेंगे ठहर ही जायेंगे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है