दिल्ली इतनी दूर नहीं थी जाने क्यों।

यारों ने कर डाले लाख बहाने क्यों।।


कहने को तो वो कबीर का वारिस है

फिर गाता है नफरत भरे तराने क्यों।।


छोड़ो भी इन बातों में क्या रखा है

याद करें हम बीते हुये फ़साने क्यों।।


ऐसी बातें जिनसे नफ़रत बढ़ती है

ऐसी बेहूदा बातें हम माने क्यों।।


क्या मिलना है हमको माज़ी में जाकर

फिर लौटेंगे गुज़रे हुए ज़माने क्यों।।


हम अब भी उस गलती पर पछताते हैं

क्या बनना था बन बैठे दीवाने क्यों।।


हम ख़ुद हैरां है  आखिर किस गफलत में

अपनी ही हस्ती से थे  अनजाने क्यों।।


सुरेश साहनी, अदीब, 

कानपुर



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