ये मत समझो कहीं ढूंढ़ा नहीं था।
बहुत थे कोई तुम जैसा नहीं था।।
अगर हाज़िर मेरा बेहतर नहीं है
तो माज़ी भी बहुत अच्छा नहीं था।।
चलो चेहरा बदलना मान भी लें
मगर किरदार तो बदला नहीं था।।
जहाँ ख़ुद को तलाशा चाहते थे
वहाँ पत्थर थे आईना नहीं था।।
किसे ग़मख़्वार अपना मान लेते
जनाज़े में तो वो रोया नहीं था।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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