झोंपड़ी अपनी महल सी हो गयी।

इक कली खिल कर कँवल सी हो गयी।।


आपकी नज़रे इनायत क्या हुई

ज़िन्दगी ताज़ा ग़ज़ल सी हो गयी।।


और आसां हो गयी दुश्वारियां

मुश्किलें सचमुच सहल सी हो गयी।।

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