चलो वो दुश्मनी ही ठान लेंगे।

तो क्या ले लेंगे मुझसे क्या न लेंगे।।


ख़ुदा सुनता है मैंने भी सुना था

कभी मेरी सुनें तो मान् लेंगे।।


अमां घोंचू हो क्या वे दिल के बदले

भला काहे तुम्हारी जान लेंगे।।


नज़र से तोलना आता था उनको

वो कहते हैं कि अब मीजान लेंगे।।


ख़ुदारा आप इतना बन संवर कर

ज़रूर इकदिन मेरा ईमान लेंगे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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