आज जब मौत की पनाह में हूँ।

लग रहा है कि ठीक राह में हूँ।।

अपने तकिए में आके खुश हूँ मैं

मुद्दतों बाद ख़्वाबगाह में हूँ।।

ऐसा लगता था इश्क़ में जैसे

पाँव से सर तलक गुनाह में हूँ।।

जबकि वो याद ही तो आये हैं

और मैं किसलिए उछाह में हूँ।।

इतना शक़ भी न कीजिये जानम

रात दिन आपकी निगाह में हूँ।।

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